ग़ज़ल  

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

पैर टूटे लाठियों से
हम चले बैसाखियो से
तंग आता जा रहा हूँ
आपकी गुस्ताखियो से
पृष्ठ तो पुरा तुम्हारा
हम बचे है हाशियों से
पर ही पाना कठिन है
आपकी चालाकियों से
शहर में जंगल छुपा है
हम जिए सन्यासियों से
बात करते हो शहर की
मान्यवर ! देहातियों से

AddThis Social Bookmark Button
Email this post


3 टिप्पणियाँ: to “ ग़ज़ल

Design by Amanda @ Blogger Buster