ग़ज़ल
शुक्रवार, 16 जनवरी 2009
पैर टूटे लाठियों से
हम चले बैसाखियो से
तंग आता जा रहा हूँ
आपकी गुस्ताखियो से
पृष्ठ तो पुरा तुम्हारा
हम बचे है हाशियों से
पर ही पाना कठिन है
आपकी चालाकियों से
शहर में जंगल छुपा है
हम जिए सन्यासियों से
बात करते हो शहर की
मान्यवर ! देहातियों से
17 जनवरी 2009 को 3:09 am बजे
bahut sunder blog hai aapkaa rachnaa bhi bahut achi hai
17 जनवरी 2009 को 4:02 am बजे
बेहतरीन बंधु!! खूब प्रवाह में है.
”पार पाना ही कठिन है
आपकी चालाकियों से" कर लें तो अटकन अलग हो जायेगी.
मात्र सुझाव है, अन्यथा न लिजियेगा.
17 जनवरी 2009 को 6:45 am बजे
पृष्ठ तो पुरा तुम्हारा
हम बचे है हाशियों से
बहुत ही सुन्दर
बधाई