बिखरे मोती
शुक्रवार, 23 जनवरी 2009
महसूस तो हो मुझको वफ़ा कितनी बुरी है
दे मेरी खताओं की सज़ा और अभी और
साकी के ये कहने पे की अब जाओ भी घर को
शरमा के ये राही ने कहा और अभी और
आज तक जो कुछ भी देखा, सुना, पढ़ा, जाना, समझा वो सब कुछ जो यहाँ से वहां से जाने कहाँ कहाँ से जमा किया वो सब कुछ इस ब्लॉग पे डाल रहा हूँ. वैसे तो मेरी कोशिश होगी की हर रचना के साथ उसके रचनाकार का नाम भी दे दू लेकिन अगर कभी ऐसा न कर सको तो अपना दोस्त समझ के माफ़ कर दीजियेगा.
महसूस तो हो मुझको वफ़ा कितनी बुरी है
दे मेरी खताओं की सज़ा और अभी और
साकी के ये कहने पे की अब जाओ भी घर को
शरमा के ये राही ने कहा और अभी और
Posted in बिखरे मोती by Rahul kundra
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