ग़ज़ल
मंगलवार, 13 जनवरी 2009
एक बच्चा बादलो का मुझको पानी दे गया
वो मेरी प्यासी जड़ो को जिंदगानी दे गया
जिसकी खुशबू से महकने लग गया मेरा बदन
कौन था वो जो मुझको इक रात रानी दे गया
डाकिया इस बार जब आया तो मेरे हाथ में
चिट्ठियों के साथ कुछ यादे पुरानी दे गया
राम जाने कौन था जो एक पल ठ्हरा नही
दर्द लेकिन जाते जाते खानदानी दे गया
उमर भर क्या-क्या कमाया मैंने जब पुछा सवाल
पोटली में बाँध कर किस्से कहानी दे गया
धीरे धीरे ले गया मेरी जवानी बिन कर
और बदले में मुझे अपनी जवानी दे गया
मेरी खुशियों के इलाके ले गया वो जीत कर
और समझोतो में गम की राजधानी दे गया
वो मेरी प्यासी जड़ो को जिंदगानी दे गया
जिसकी खुशबू से महकने लग गया मेरा बदन
कौन था वो जो मुझको इक रात रानी दे गया
डाकिया इस बार जब आया तो मेरे हाथ में
चिट्ठियों के साथ कुछ यादे पुरानी दे गया
राम जाने कौन था जो एक पल ठ्हरा नही
दर्द लेकिन जाते जाते खानदानी दे गया
उमर भर क्या-क्या कमाया मैंने जब पुछा सवाल
पोटली में बाँध कर किस्से कहानी दे गया
धीरे धीरे ले गया मेरी जवानी बिन कर
और बदले में मुझे अपनी जवानी दे गया
मेरी खुशियों के इलाके ले गया वो जीत कर
और समझोतो में गम की राजधानी दे गया
" सुरेंदर चतुर्वेदी "
13 जनवरी 2009 को 7:52 am बजे
bahot hi badhiya gazal bahot khub...
13 जनवरी 2009 को 7:40 pm बजे
डाकिया इस बार जब आया तो मेरे हाथ में
चिट्ठियों के साथ कुछ यादे पुरानी दे गया
-वाह जी, चतुर्वेदी जी की उम्दा गज़ल मन को भा गई. बधाई एवं पेश करने के लिए आपका आभार.