ग़ज़ल
बुधवार, 14 जनवरी 2009
जो देखने लायक न था हमने वही मंज़र देखा
खवाबो के सिने चाक थे खू से भरा खंजर देखा
आवारगी-ऐ-सुखन ने ऐसा नशेमन दे दिया
छ्त आसमा की मिल गई औ माटी का बिस्तर देखा
हम जिंदगी के काफ़िले को ले चले जाते ग़ज़ल
पर रहगुज़र में दोस्त ! हमने दर्द का लश्कर देखा
संजीदगी से जो किया करती इबादत इश्क की
उस आशिकी को आज हमने यारो दर-ब-दर देखा
इंसानियत को प्यार से हम भेट्ने जयो ही चले
जो पल रहा था अस्तिनो में वही कायर देखा
जो ज़ख्म दिल का भर दिया था वक्त ने मरहम लगा
उस ज़ख्म से अठखेलिया करते हुए नश्तर देखा
" उद्भ्रांत " मुहबत के नगमे सुनाने जब चला
शैतान को नफरत का लिए हाथ में पत्थर देखा
15 जनवरी 2009 को 12:55 am बजे
बहुत बढ़िया
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तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
15 जनवरी 2009 को 2:36 am बजे
bahut acchi rachana
15 जनवरी 2009 को 3:19 am बजे
bahut khoobsoorat rachnahai pehli baar aapka blog dekha bahut achha laga bdhaai