ग़ज़ल  

बुधवार, 14 जनवरी 2009

जो देखने लायक था हमने वही मंज़र देखा
खवाबो के सिने चाक थे खू से भरा खंजर देखा
आवारगी--सुखन ने ऐसा नशेमन दे दिया
छ्त आसमा की मिल गई माटी का बिस्तर देखा
हम जिंदगी के काफ़िले को ले चले जाते ग़ज़ल
पर रहगुज़र में दोस्त ! हमने दर्द का लश्कर देखा
संजीदगी से जो किया करती इबादत इश्क की
उस आशिकी को आज हमने यारो दर--दर देखा
इंसानियत को प्यार से हम भेट्ने जयो ही चले
जो पल रहा था अस्तिनो में वही कायर देखा
जो ज़ख्म दिल का भर दिया था वक्त ने मरहम लगा
उस ज़ख्म से अठखेलिया करते हुए नश्तर देखा
" उद्भ्रांत " मुहबत के नगमे सुनाने जब चला
शैतान को नफरत का लिए हाथ में पत्थर देखा

" उद्भ्रांत "

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